पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३०५

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निधषद् ! | सः १८+ गैरश्याम इयिं सद्दन अन्न एर यि हैं अम कम से। मीले कनपः म्युज अँधेरे पि जलश मनि जैसे ॥ झटकत र घरत याल हुइ मुख मयंक यी साई। । सद सा र ३ तिफ मैन कटा मॅ६ ॥ धेर ४६ घचन अदा पिय प्यारी प्रगटत नृत्य भई गति । पृन्दावन दित ताभ गरम र अतिर्हित रुप पुल भति ॥ १॥ । बलि जाउँ भुन सुन्न रास) जा निभुवन रुप स्वाभा रम्झि किया निरसि ।। प्रतिविम्य तु कफेल पमनी माग राशना कान। सुधासागर मध्य मई संघ झुगन्दन । छबि मरे नच बैज इल से शै ति नैन । पूत मनु मनु ना भूरे मैन । कुटिल भृकुटर नमित साभर कहा की पिसे। मनहुँ सस पर यम बदरी युगुल किंचित छ । इत माळ विल ऊपर तिलक पनि जाय । मम घटे विमान ६ गन सहि भेटत जाय । नै मुलुझन इसन दमरुन दामिनी दुन्नेि दी। वृन्दर्भिस दित रूप स्वामिन केन विधि वि वरी २६ साभर फैहि बिधि वरने सुनाऊँ। यक रविना लाज लोचन हनी का पार य पाऊँ । अग अग लावन्य माधुरी बुधि चळ किती बताऊँ। अतुलिद गुमति कह गये क्यों टूम पसरनि धरि जु उन्ना ॥