पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३२१

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मियन्धविनाव! [सं० १८०१ मनैाहर एखों में किया । इन्होंने अपने विषय में केवल इतना लिया है कि माप मिश्च धे भार सधस्सुम मिल के शिष्य थे । इनका केवल यही एक अन्य इमार देने में आया है, जै! १७४ पृष्ठे का ६, परन्तु मिथ युगुल विपरजी झज्ञराज ने इनके चित्र आई सात अन्य अलंकार, नायिकाभेद, काव्यरीति इत्यादि विपये के सेठ जैदयालजी तअफ़दार के पास दे, जे अभी तक प्रको धित नहीं हुए हैं। इनकी चंद्रिका क्षेञ में मिली है। इन्हेंने शभापा में कविता की, परन्नु दे। एक स्थान पर, प्रान्त मिथित र संस्काई मिश्रित मापा मैी लिखी है। इन्होंने अनुमति साधारग्यतया अधिक लिखे हैं । इनकी भाषा प्रशंसनीय है। ये महाशय यदुत शम् छन्द वदलते गये हैं ! इनका अनुबाद पैसा मनाद्दर बना है कि वह स्वतन्य ग्रन्थ के समान हो गया है। इनकी कविता में उत्कृष्ट द वहुत ६ । ये महाशय केशवदास की रीति पर चले ६ पार हन्दी की चाल में यह अन्य रामचन्द्रिको सो घना है । इम इनकी पद्माकर की ४ी में समझते हैं। दिग्गज दुषस देवकत दिगपाल भूरि धूरि की धुंधे से अंधेरी अामा भान की। धाम में घर के माद्र वार अबला को अरि तशत एराम राई चइत परान की । सैयद समय भूप अली अकबर दछ पळत अज्ञाय मा दुइभी धुकान की। फिर फिर फन्नु फनीस उलट्नु पेखे चैाली स्वालि देछिी ज्य तुमाळी पाके पनि फी ।।।