पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३२२

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अारासत प्रकरण । घुस प्रयाहन की सरिता सत्र र बहैं घपुढे सरसानी । कानन कठि अगैठे कुकावळ भार भरी धरनी अकुलान । सुडान छह रुप भई चित चा६ भई निदिचे नियनी । सोतल आप पियें' सस में पर हीतल की तव ताप तुझानी ! त्रिभुवन भूपन भूमि भूरि पर नगर सिरोमनि । झल झलत छवि अच्o अच्छ लखि भापति धनि धनि । सोत विकट कपाट क्षति पुर वार फटिक मप | म रच्या कैलास शंभु निज वास भक्त दुय ।। जनु जठ सुमेरु प्रच्छना चहुँ सुबरन प्राकार पर। सर वर जद्दीन के करि सकै सय मर घर नई नगर फर ॥ (३७) दूलह कवि । शिवसिंहसपा में दूल के जन्म का सेवन् १८०३ विलिस्रा हुआ है, परन्तु इनके पिता का जन्म का संपत् १८४ पि को दिया हुआ है पर थ६ पिता पुत्र का सम्बन्ध भी कथित है। इस से ज्ञान पड़ता है कि दूल के कुटुम्ब का संधत् सरेराज़ में बड़ी ही असावधानी से लिम्रा गया है। यदि संवत् १८०४ फा दुख्द का जन्म काल न मानें, तो यए भी किसी प्रामाटिक रीति से न समझ पता कि उनके जन्म का शुद्ध सय पा है ? कवीन्द्र र मूलद्द के प्रन्यों में सन्-संवत् का कोई ध्योरा म दिया गया। है। दृलद् ने कॅठीमरा के अन्त में केवल इतना लिखा है कि “इति श्री महाकवि कालिदासात्मज कयौन्द्र नाथनन्द काँच दूलद्द राय मिरमिते कविकुलकंठाभर अकारनिरूपणं समाप्तं"। कार्ल