पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३२७

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३१० मिश्रदन्युविनैः । । [ १० १८०५ गार्यं च मधुरे सुर गीतन प्रोनम संग न धार माई । हाई कुमार नई छिति में छबि माने विड़ाई नई दरियाई । उँचे झटा धढेि घेखि घाँदिसि घाढी ये साल गरे। भरि आई। कैसी फरी ६ दियर इरि अाये नहीं उदही हरियाई ॥ (७३६) सरयूराम पंडित | इस महात्मा का बनाया हुआ जैमिनि पुरा हस्तलिग्नित इमार पुस्तकालय में है। इसमें पंडित जी ने अपना नाम पार प्रन्य-समय लिना ६ । इसमें इन्हीं में प्रयम घी लोके द्वारा बन्दना की ६ जिनमें द्वितीय में अपना नाम मात्र लिम्र दिया है और फिर अपने विपय में फहीं कुछ भी न कही । आपने अन्त में एक द्वीहे द्वारा यह कह दिया है कि यह अन्य सॅचत् १८०५ में बनकर तैयार हुआ। हमारे पास जा प्रति ६ च संवत् १८८५ में लिखी गई थी। इस अन्य के अक्षर जोड़ने से आकार में यह ७६०० अनुष्टुप छन्द थाले अन्य के बराबर पाता है। इस हिसाब से मागचत १८००० ओर पाल्मीकीय पाय २४०००है। इसमें ३६ अध्याय हैं, जिनमें परम मनोहर पा बिती कथा चन की गई है। मधम पार अपायों में या फी तेयारी, येाहा राया जाना और सेना एकत्रित हैन कहे गये ६ । पचम अध्याय | से घाड़ा इटना घेर उसकी रक्षा में युद्ध पति ६ । इसमें गम से अनुशाल, नीलध्वज (इसमें अग्नि का युद६ । ), हँसावज ( इसमें- नुय प्य सुधन्वा का ऋचंड युद्ध है।), स्त्री गगा, लुपेग राक्षस (चकात्मज्ञ }, अर्जुन पुत्र बन्न चाहन (इसमें कराल कुद, साप्त