पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३३३

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। मिर्गन्धुनाई ।। [ १० १८०१ यिधर-~-भपतराय राज्ञा असाथ पाले में यह थे। ये तैसे ६ श्रेयी के कवि थे। कई मॅय देने में नहीं आया पर स्फुट छद सम्र में देने गये हैं। जैयन जारी प्यारी चैढी रंग रावटी में मुम्न फी भरीव से दूरीची थींच झके। भूधर सुफयि भई से मन माह सरी । जन सी में मन न स प ।। सास फूल वैना वैदी र अव घन फी । चदन फी चर्चा की चाय चि छल। फीर सारी चुनरी चार या चिपनि गौर घारी येसरि मरेर यारी अलर्क' ॥ ६ ॥ ( ७४५ } शिवसहायदास । ये मष्ट्रय पूनियास भद्ध कवि मैं । इन्होंने सघत् १८०१, में चि-चापाई के काफिरसीमुदी नामक ६ सुन्दर मन्ने बनाये। द्वितीय ग्रन्थ में पक्षाने (इपाझ्यान ) ६ र उन्हीं के मिला कर कार ने नायिकाभेद दर्शन किया है। इन्हों ने ३६६ स्वाक्तिया का ५६ पृष्ठी में घन क्रिया है 1इनकी कविता कात्रियों के कारण पर्व मनाइनी है। हम इन्हें साधारण श्रेणी में क्यो। तिय तद झा वेषन भूप । चल्या चइत सिमुल्ला ॐा कप ॥