पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३५९

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५३ मिष्टविनाः ।। [म ८1। | सपत् १८०६ में यादही घर मपाय सफ़र अंग मसु ने घरादा पानी पर घटाई , सिमे पुरझमल ने दीर का साथ दिया । इमसे ज्ञान पद्दता है कि उस समय वही मनुष्य पादुपा का घर जन्दा रा और मिष दैन। ६ सकता था। प3 गुजम्ने पादशाही अफसर असद 7 मार का फनै अटी या मायना डी आर कर दूसरे ६ साल सरकारी वशी जय उनसे रहने अथा भय पई। इश्वी घरद पी वरफ पै सूरजमल से छडा । इसी के दूसरे साल वय सूरजदाट यादशाह से मिठकर घर में रहने गये और उसमें चार ही चर्प पीछ दिवाई से रह कर उन्होंने दिदी । पराश फी लडाई या चयन सूदनी ने पहुत पर किया है। जा सूरजमल सैन! समेत मसूर के दल में पहुँचे, वय ये मसुर से मिलने गये और उसके पॐ मजूर में सकारार्थ उनके दैरे पर मिलने गया । उधर महमदप पठान ने अपनी सेना एक उम्पादक व्याख्यान द्वारा युद्धाप प्रोत्सादित की, दार यी सुन अहमद का कहना सर पटान उठाएँ । जा पनि तिसके। तै उना ऐसे इन सुनाए । धगस पी राज मऊस की अवाज पह | सुने प्रज्ञराज ते पठान धीर चपके । भाई इमदघाने सरन निदान जान आप मनसुर नै रहेन भय दय’ ! चना मुदो हो उठ खड़ा हुँदा देर घ्या है। बार बार कई ते दराज क्षाने सब कैं।