पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३६०

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उत्तरालंकृत प्रस्य । ७३३ चंड भुज इंडबारे इयन उदंड वारे कारे नारे लगे सँवारे रा रखे है | | इस अध्याय में कितने ही योद्धाओं के व्याख्यान बढ़िया है मेर अामद्रा में जा सदेता दुरजनल से बाहुला भेजा था वह भी प्रशंसनीय है। संयत् १८०९, 7 सूरजमल ने घासहरे घा तुम यहाँ के घि का मार कर छीन लिया । राय के परत्व की भी सूदन ने अच्छी प्रशसा की है:-- अड़ राखी पेंड रा मै; रजपुत रखी राब रेज़ रग्व्रि पद्द हीन्दी सुरपुर की।. सँच १८२० में अश्मय शाह ने मसूर या वरत्रात कर देया, जिस पर फोघ करके मसुर सूरजमल हैं दिल्ली पर घटा ले गया और इन्ने कई दिन तक दिल्ली फी खुव छूटा । इस | लूट घा वन सूदन ने बहुत उरकृष्ट और विस्तारपूर्वक लिखा है ओर दिल्ली-वासिये फी विकलता के भी फई छचों में कई धेखिये । द्वय दुर्शित किया है । इसमें से पड़ी चेली को छन्द नीचे लिसा जाता हैं। महल सराय से रयानै बुआ पूजू करी मुझे अफ़सोस घड़ा बड़ी वीवी ज्ञानी का । आलम में माम चकत्ता का घराना या जिसकी इबाळ दैतनैया क्षेसा तानो का ॥ झी ने बीच से अमाने लेाग जाने लगे | माऊत हीं जाने। टुझा पेज देदादी का।