पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३६

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१६ शिप्रपन्धविशद ! [ s चंद की कहा है सर केकल कर कपात जाने) थिम म फरी मद फेरि फैज़ काटी में अनार के दाने । मीन सरासन धूम की रेस मटूफ समर या मुलाने । देसी गई नई ६ भुव में नहीं देंगी ना कदां यये ज्ञाने १६५ अलंकार छंद फाय नाष्टक अरि । | इगिनी मैं द्वार परानी के निवास है। फेक का विपन्न पंकज के छ मान निवसत जानै मति महि । हुयास ६ ॥ फुल से फरत घाना चेहत मक प्यारी | हँसन में ड्रात दामिनी की परकास हैं। 48 मुन्न कार्की पइतर दीजै प्यारे दाल ,आॐ के कई हाव भाव के विलास ३ ॥२॥ (६८५) दादर स्यामा तिरिव' घी अनन्य सादाय के थे। इन्होंने संपत् ६७ में 'नैमबत्तीसी' पनाई । इनके नाये हुए जैमवीर, इयतर, अफिसित, ग्रनविलास र स्वयं गुरुनाथ नाम अन्य इमने छगपूर में से 1 नफी कविता मी ही पी। इन इन्हें साधारन थे मैं समझते हैं। उदाहरण । भी इरिच पाल लाल पद पंज प्याऊँ। वृन्दाथन में व साक्ष सश्न के माऊँt अंदॐ जनुना नीर झीच घापति माऊँ। नैनन ने छ रेनु या तन पट्टाऊँ ६