पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३६६

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• क्या चैनोंदन] ५६ करा । सवत् १८१२ मैं यह ग्रन्थ बिना था। इसमें विधिध छन् में कविता हुई है। [म इन्हें साघारध थे। में रफ्नै । जे मग मायक बीर सिकट हुन सहारन । जे गर्न नायक बीर साधु जन विपति चिदारन tt ॐ गन्ने नायक दौर धीर निरमल मति दायक। ३ गई नायक बीर बिघन वन दान लायक है। सुम एक दिन ॐ ॐ ॐ अराड आनन्दमय । कचि दैते दयालु जें ग्रिस नन्दु र अन्ध जय ॥ (८५७) नारायण। इन बनाये छुप माधवानल कामकन्वला मेरि बेतालपसी मामक ५६ मैर १६३ पृष्ठों के दो इष्ट ग्रन्थ इमने देने दें। ये त्रिविधं न्दी में हैं और इनकी रचनाशी कुछ कुछ छल कधि से मिलती है। हम इन साधारण शे में रखे 1 अनुप्रास का इन्हें भी ध्यान रहा था । ३ मुइ धन्द से पुड सी चिरा भाछ तु रानै न वदवा के मिलन है। पाप छप पानिप धिन जल जोधन के कुछ साप्ति ज्ञान वचाएँ अनि ते ॥ पैसे के नन्दनी के नन्दन की प्यान ही में फी५ ॐ४ साल अपानहि दिन ते । मुगति मुकति ताकेतु एते निरस त | सुइय/वि फटही मुसुद के बिलम है ॥