पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३६७

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१८० मिअन्धविनेट ।, [सं० १६११ माधवानल कामफन्दा पा रचनाकाल कवि ने संवत् १८१३ दिया है। | (८५८) रूपसाई ।। ये धीमास्तर फायर पन्ना के माद्दा यागमल में रहते थे। इनके पिता पर नाम कमलम, पितामद् वा शिराराम पर प्रपितामह का मरयनदास पाय महाशघ दैलो क्षत्री पन्ना महाज्ञा दिन्दुसिंह के यहां थे। दिन्द्रसिह महाराजा के पिता भासिद, पितामह हिरऐश चैर प्रपितामह उग्रवाल थे। यह पन इन्होंने अपने ग्रन्थ में किया है। इन्होंने महाराज हिन्दूपति के प्रश्चिय में परिस नामक ग्रंथ संवत् १८५३ में घनाया, जिसमें कुछ ५०० ६६ में काव्यलक्षगा, छन्द शान, नायिका नायक है। रस, अलङ्कार मार, पट तु के घन १६ । इनकी कविता साधारण है। हम इनका साधारण श्रेणी में राते हैं। जगमगात ना अरीं झलमल भूपम ति। भरी दुपदरी वियाको भेट पिया । मेति ॥ लालन वैगिं चला न य विना तिरे बाल । मार मरेन से भरति करिये पनि निदाल । (८५६) हरिचरणदास | मद्य जाति के प्राप्त बूगढ़ ( माहवार) के ने वाले थे। इनके पूर्वज दुपा विहार पणना गैमा माजे चैनपुर में रहते थे। इनका जन्म संवत् १७६६ में इसे था और इन्होंने सं० १८३५ में केशवक्ष असिस केविप्रिया की अब्ने छीफा छिी ।