पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३८८

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अनेरास्दास ] मनरालंकृत प्रकरण ।। ८८ इहु फंस उई मैाधन सारे । के कार मे।हिँ बन्ध में हारेर । पैसेह बुख स्याम सभा । त्रैल मे नैनन के प्रारी । ले गये मधु महूर भिकारी । भावी य स हीन विद्वारी ॥ देव्रत रत्न धक टक लाई । जब लगि धुरि होष्ट में आई ॥ मयूँ मैट जव दृगन तै मूर्छि परों खिलवाय। कति गया ॥ दूरि अघ धुरि ने पति लयाय ॥ ग मृग चिफल जा रहे थे । गाय घास भरा सा गर्ने । तर्भ घेळी पालव कुग्दिानी । अज्ञ की दसा र पर। बजरग ।।३।। इन्दो फीति कर बस अपने तनै जगत की झासा है। जाड़े प्रेम नै सांई से र६ दरस रस प्यासा ६ ॥ अणि मैटि गरद कार या सिर ६ ल तमप्तिा ६ ॥ यह बिधि गई संत तय हुआयें यां या दूध जतसिा है ।। ४ । फुलन ही कं दुकूल अदा छवि भूषन फूलन के अभिराम । झूलन फेा सिर गुच्छ लर्स अफ कंदुक 'लभ फ कर घाम ते ॥ फूल रूरासन लायक पानि भुजा रति न म रस पाम है। । म पनीमच फा इढि आए हैं मान घसंत के धाम हैं। नाम (८७६) जगवसत् ब्रोिन स्रोतहरी ज़िल गांड़ा। प्रथ–१ छन्द गरि (१८२७, २ साहित्यलुवाधेिध (१८५८), ३ नाशिम (१८), ५ चिशमीमांसा । कविशाळ--१८२७। बियर--इनकी वनिता बहुत अच्छी है । ये झापा:य के प्राचार्यों में गिने जाते हैं । इनकी गणना तार व की भें शा में की जानी है।