पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३८९

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भिक्षयन्शुयिने । [ मं० १८२५ साँस दसै ससि स नख म्रि देरी उटी उर५ नगमा । पेंच बन्नुले पग ये, घनै झनु गा नर घनी छवि जाले ॥ जागत पुषे अलसाय चिया पिपान रहे दृग दालें । दैम रूप सी एर फंा पर फी घरि प्रायड 5ष रसाळे १८८० ) गोकुलनाय ।। (८८१) गोपीनाथ, (८८२) मणिदेव । महाराजा फाशीनरेश के यही बन्दीजन पुनाथ कौश्वर घड़े मान नै दुवै थे। उनकी महाराजा ने चैारा भाम दिया, जहाँ उनका कुट्य रहने होगा। उन्हीं के पुन गैरफुलनाथ धे, जिनके पुत्र गोपीनाथ हुए । ये देने महाशय अच्छे क थे । कविवर मायादेवी गाफुलनाई के शिष्य धे । रघुनाथे कवि ने संबद् ३७९६ से १८०७ तक कविता की। उनके पुत्र गाफुलनाये के विषय में शियासंदसराज में लिखा है कि उन्हों ने चेचन्द्रिका पैर गनिन्दसुत्रदाबहार नामक है। झन्ध पनाये हैं । इनका वैनाया हुआ तीसरा ग्रं राधाकृष्याधिहास है, जो धिपय बैंपूर आकार बने में जगत यिनैद के बराबर हैं। इसके पं० युग़ल- किशोरजी ( ब्रजराज) ने देखा है। इनकी रचना में चैनचदिका घ महाभारत हमारे पास प्रस्तुत हैं । प्रधाज्ञा झा नम्रशिख, नाम रत्नमाला केप, सीताराम गुणव, अमर वाय भाषा और झविमुखमंडून बामक इनके पार ग्रंथ यज्ञ में लिखे हैं। प्रथम पन्ध में ५६८ छन्द है जिनके छोर पाना माहुरराज्ञा चेत- सिद्दकी घशावली एवं अलंकारादि का विषय पूर्णतया कहा गया है।