पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४०१

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[ JE: मिश्चविनोद । मणिदेव । इनन यह सु वात भर पग एस उदार। इग्रे भ्रम रग किमि सी वाद तुम उपचार || बाप का नुए गर्षित दर पनि प धन ।। प जानत उन धी शत रीति हम धछ पेन ॥ इन अयं भवदीन अरु प्रीन पर नीदीन । | सीन तियान अथ धीन अस परिडीन ॥ परडीन मुद्दीन अरु अति दोन अरु श्यान । ऑन अ सन दोनय भाडोन अडीन ।। न्हें प्रादि महार शत ६ उडन के ते सर्व । भी विधि दम सिने तातै गत इतने गर्छ । नान गति थी कि हा अभ्यास तुम गति तन। | प्रद्य करके इडो में सँग सुर्क जा कर गन । पाग के थे पचन सुनके धो एस सुधन | एप गति सुन वि की नुमाफ ने गति चाने । प्वः पति सी व हुम तुम पधा सचिव सुवस। धि यदि विधि पद्दस लागे उडम यसै छ । ६ळे पृच्छन त तच्छन यी का सर । उडत चौलव फिरत इत उत गद्दे गुना ॥ दैग्नि हा इरिधि गति भै मुदित सिगरे काग। इस सिमरे, उ बिन जाने सासु ममाग ।