पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४०८

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मनभावन ] उतिन प्रकरण । 'सत-पुत्र ग्रन्थों में वर्णन किया जाता है। यह प्राध बहुत ही प्रशसनीय पहा , मेर छद मैंगियेइसे अचम्प पढ़ना चाहिए। | इसकी रचना गिल सुत्रों के अधिार पर की गई है। एम मनीरामजी ॐ दाल फनि की श्रेणी में समझते हैं । इस प्रन्थ की यदि सका है। जावे से बहुत ही उचित है। भर छद फे मुर्म के बड़ी मदद मिले। (८८५) मनभावन ब्राह्मण मुड़िया जिला शाहजहाँपुर वाले । सरोज्ञ में इनका स० १८३० दिया हुआ है और लिया है कि ये मदनराच फे १२ शिप्य में प्रथम हैं। इनकी बनाया हुआ ऋगार- उन्नावली प्रध है। जो उदाहरण इनषा सरोज में दिया ६ पद चत ही एस और प्रशासनीय है। देम इन की गणना तोप की क्षेत्र में करते हैं। फुली मनु मालीन ६ मलिद युवर | मुरभि लपेट्यो मद मधुर हैं सगीर। छलित रूप गन की वह तुमाल जाल । | लतिका पदबा है। ईसे दूर होत पर यही गुत पन अति को झुक झॉय वन फेफी कुल कलित कपोतो पिंक बोले पर। अरे में म श्यामा श्याम गरे भुज धरे देऊ इरै हुरे बेलस ६ तन्तनुज्ञा तर ॥॥