पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४४७

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E मिभन्नाद्र । [म है। गैर पदपज्ञ पराग ने राज्ञेय | पद पंदनीय विरदापति पढी र । ताक क्नुिपाई पाय धात्ती नै धरित्री रची। | जाप क वन पी सनी १ ६ ॥ मनियनि: शाह विशु सेवं स पापप्त सी मैस के पदा वास सस मद रई। सई सुरामुर ६ सिराम सदाशिव मसन के रूप में सर १ चदो रहें । इनुमती से। अमय फोर पानी सुन्नि मन | मादिदै चाहि जा सुघारी घले तयारि । यार हनुमंत तेहि गरज सास कर दुपट परि माय भूमि परे पदार ॥ पुच्ने पैटि फेरि दतन दुरददि मन बाटि चाथि सुते माघे दारिद्वार। उदर पिदार मारि हुयन का टारे वीर जैसे मूगराम गजराज हा फार फार ॥ छत्री घर मनियार वासी वासी जानिए । जारी पचनकुमार यादत सुखपद सदा ॥ मृगपद मंजुल पास सरयू तट सुरसरि निकट । पलिया नगर नियास भयो पटुक दिनते सुमति