पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५२५

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५।। मिना । (२) १८१ (१८९८ में) भए अपना पंप मापद पण अन्य धन्य हैं : मापनयास नागपः १५० पृष्ठ पर प्रन्थ ४ी +फूट वाप मा पाई है। अपनगर महात्मा गुन्पत.नाचा मंः इम माम पाले अन्य के चाय पर घना है। म २३० पृष्ठ का एक वडा र उत्तम निघग्मप्रन्थ है। इन्दश में १०० उचघ छन्य ट पर G ने कई = र प्रत्येक एक या नाम उसी द में फाद त्रिपा ६। यह ग्रन्य मत दिष्ट्रय ६। मद्दपा- सायली फेरी एक शुनप्रन्ये ६ । पृावन जी ने यमक, अनुमानादि का प्रया प्रयोग किया और यह पिता की । इनकी भापा अमरपा ६, परन्तु प्रज्ञा चोली में भी इन इछ कविता मिलती है । ६ महाकाय माझुकांच भी थे। वापसी पाइ ने एक रात भर में सेना द्वाद्धा था । इम इन्हें तैप की क्षेत्र में रम्ने में। वैज्ञान में गुना भु से बन गया सद्दी । बकरी के घर का बट्टार मारिये नहीं ॥ आनन्द् फन्द्र श्री झिनन्द देव ६ जुद्दी। जस चैद भी पुरान में परमान है यही ।। केवल जिनेश फी प्रभापना चित मित कन्न १ ई नु अन्तरिय पाद कंज्ञरी। मूप मा यिद्धाल मार म्याल वैर टाल दलि हैं जद सुमीत हे निचीत मीरा भंजरो ॥ अगदीन मग पाथ एप पा का जाय नैनद्दीन नैन पाय गंवा कंजम्पशन