पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५६२

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. , हामदास | उत्तराकृत प्रकरग्य । ९७१ इसका नाम पलट कर गरिसतसई प दिया । यह ग्रन्थ | संवत् १८९२ का लिखा हुआ काशक को मिला था, से इस | कचि का समय इस संवत् के प्रथम ठहरता है। इनका नाम | इन फव की नामावली में नहीं है, जिससे अनुमान हैता है | कि में रूदन के पीछे मैं हैं। अपने विषय में इन्होंने इतनाही लिए है। कि इनके पिता का नाम भवानीदास हैं। सैज में इनका कविता- काल १८७७ दिया है और इनके बनाये धार और प्रन्थ वृत्तत- गिनी सतलई, ककहरा, रामसप्तऋतिका और थाणीभूषण भी लिपे हैं। | इस कवि ने अपनी कविता को प्रणाली वैकुल विहारीलाल | से मिला दी है और बिहारीसतसई से शुर-खतराई इतनी | मिल गई है कि यदि बिहारी में देहे सथ लोगों को इतना याद में होने और ये चाइदै | दोहे मिलाकर रख दिये जाते ते गिद्दारी | के सात सा देारे छाँटने में दो सा देदे तक इस फधि के भी छूट | माते । बिर की समता करने में और कोई भी कवि इतना कृत- फाप नहीं हुआ है। बिहारी के फेयल उत्तमोत्तम है इस कवि फे आगे निकल जाते हैं, परन्तु उन के शेप देई इसके चैहां से चढ़ कर नहीं है। रामसहाय के देशों की जितनी प्रशंसा की जाय थैदी है। इसमें भाई, झनक, अनुमासादि सन्न बिहारी के | सनात हैं। इस कवि ने अपनी सुक्ष्गदर्शिता का अच्छा परिचय दिया है। सुकुमारता का भी इन्होंने अच्छा चर्यन किया है। उत्तम इच्चों की मात्रा इस ग्रन्थे में बहुत अधिक है। इन ७ वैाई में इस झवि ने कोई क्रम भट्ट क्या है और इन सत्र में पार