पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५८२

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दीनदयात ] उत्तरात प्रकरग्यं । ६८॥ अनुरागबाग में एक प्रकार से श्रीकृष्णाचन्दजी का जीवन | मरिब पति है, परन्तु सब घटनायें न कह कर पाबा जी ने फेला ललीला, माखनचारी, हैली, रास, अन्तनलीला, मशुरागमन, बारामासा, उद्धव का नजगमन, पट प्रस्तु, उमच फा hiपिका से चाखाप, और उद्धच का फुगा से मैपिंकी के सन्देश फहने के वन किये हैं। उद्धवसैयाद पड़ा लम्बा वैज़ा है और उसमें सूरदास की भांति इन्होंने भी जम का प्रेमान्मत्त ना लिखा है। इस प्रन्य में पॉच केदार (अध्याय) हैं, जिनमें से चार में उपर्युक्त कथा चर्णित है और पंचम में देवनाम। की स्तुति हैं। पापा जी के इस अन्ध में शवैचित्र्य बहुतायत से पाया जाता है। इन्हें इसको बहुत घड़ा शौक था। इसके अतिरिक्त ये महाशय रूपक के भी बड़े प्रेमी थे। इन्होंने अन्य काव्यांगों का भी वर्णन किया है । इस ग्रन्थ के देने से यह नहीं जान पड़ता कि यद्द आई कथाप्रासंगिक ग्रन्थ है। इन्होंने साहित्य रीति गिर पलकर कथा कड़ी है। कई थाने पर प्राकृतिक चीन भी अछे देख पड़ते हैं। इनकी कविता में बुरे छन्द प्रायः कोई भी नहीं हैं, परन्तु परमेशप छन्दों को भी अकाल रूप है। जैसे टक- साली इन्ट उत्कृष्ट कवियों की रचना में मिलते हैं, घंले वायाशी के प्रन्धों में नहीं पाये जाते । इन उपर्युक्त कथन के उदा- इराण यल्प अनुरामवाग से युद्ध छन्द नोचै लिखें जाते हैं। फच धी पहिरिपोरेगा की सजे गे छाल व ६ घर धीरे द्वेक पग राम्रि है।