पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५८३

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धन्धुनाई। [सं० १८८४८ बारि गरि यर ईयरी गगा दुई फर्भ इ झगरि भूगरि मरि भारिप ६॥ मेरे अभिज्ञापन के पूर्ण कर सचिन से घामान के संग कत्र मान के चारित हैं। भयो भयो चरिद घलर्भय से कई गै व मैया मया कई कईया काम मात्रिं है ।। गंजत पैज़ अली गन के बहुजन ट्रम्य वन्दम्य दी है। तादि पढ़ी गवः द यी निर. सीइन पन फी नापली है। माल उसे घपली पर मैं कर दीनदयाल रली मुली हैं। फुल गली में अचानकदी भी भांति अली उन । हकी ६ ।। कमल मनहर मधुर वुर ताछ सुने नूपुर निनादत से आन दिन घालि छ। नौ मम ही के वृन्द गुम्न सु मादिन फो गई कै कृपा की कत्र घेघन ताल है । नैम घर छैम चै अमुद ईय नद्यक्ति प्रेम काफद चौच कम ध फाछ है। बरन तिहारै जदुध राजहँस काय मेरे मन मानस में मन्द मन्द ल हे ।। अक्तपम इनके प्रयम ग्रन्थ से आकार में कुछ छैाडा ६। इसने ८५ पृष्ठे रायल अठपेज़ी के है और उसमें १०४ ! इस में प्रायः अन्योकिये ही का चर्णन है। जहां किसी साधा र घात की ब्राड से किसी अन्य वस्तु फाउझए घन होता है घहाँ कवि गो अन्येक्ति अलफार कहते हैं ।