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सं० १००)
मिश्रबंधुविनोद

६३६ मिश्रन्युदिनेः । [सं० १०॥ महाराष्ट्र राज्य व्यापित विया, इसी माह में मारा । घन्तसिंह ने हिंन्दूपन के भाव को जागृत घर के मुरी सेवा करते हुए भी गुदमरल्ला व घार घरभेघ । कैदी शिवा जी से मिल कर इल की दुर्गति वा डाली काल में मरा राजसिद्द ने मुगलैt की अधीनता हो । मार' र छ प्रचंड युद्ध में स्वप’ बाजेघ के पराजित । इसी काल में जसवन्तसिद के मर जाने पर भी शिरा ग्रह । ३० वर्षे' तर्फ मुगल से घोर युद्ध पर अपने पक्ष महाराज अजीतसिंह तथा माचार राज्य की रक्षा की, । माछ में सम्पतिराय ने अपने प्रभाव से सारे बदलाइ का ई मान करकै मुगा फेा हिला दिया, इस काल में,मामा । साछ में केवल ५ सवार घेर ३५ पैदल में ही सहारे से ! प्रारम्भ धार, ६ मुद्रा का सामना किया और धीरे धीरे विं पर विजय प्राप्त करतें हुए अन्त में देर राई यायिक ः विशाल राय ने दल पद्द में बैर इसके आस पास समापिर दिया, चार इसी अनुपम काल में शायमूर्ति चला बना पाजीराप शिया ने मुगल साम्राज्य की चकनाचूर, फर' 'भारत ५०० वर्षों से आये हुए पायाघ्राज्य के फिर से स्थापित है। पैसे दप प्रतिमा सुकाल में सादि की दोन्नति परम स्वाभाविक थी और बद्द हुई भी। सूर और . दास के समय में जैसे धृष्य और राम मां की ६ एमए कर उत्तरी भारत की पुनीत किया | भूपए और देय पाले काल में उत्साह ' . ही