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प्राचीन कविगण


अधिकांश छंद, कवित्त, सवैया श्रादि हैं । कहीं-कहीं दोहे-सारठे भी मिलते हैं। 'धर्म-प्रदर्शिनी' सं० १६६३ में समाप्त हुआ । यह श्रीवेंकटेश्वर-प्रेस में मुद्रित हुआ है। धर्म-नदर्शिनी धर्म-विषयक गय-पद्यात्मक ग्रंथ है उदाहरण-

फटि जाते सेल के सहस्त्र फन भारन तें,
दिग्गज दतारन के दुःख को छुड़ावतो;
पुहुमि सहमि दगदग ढगमग होति,
हद्द तजि जलधि को जल बदिपावतो।
रहि जातो देद-पथ तुपथ करै को कहाँ,
देवन की सेवन में कौन मन लावतो
'ईश्वरीप्रसाद' जो न अधम-उधारन को
वानो गहि कालिका को नाम जग छावतो।

नाम -(२१४३/दश्र) शिवदयाल पांडे ( भेप ) कश्मीरी मोहल्ला, लखनऊ। जन्म-संवत्-लगभग १६०० । रचना-काल-सं० १६२४ ।

ग्रंथ- दशम स्कंध भागवत के भाग का छंदोबद्ध अनुवाद । विवरण--श्राप हमारे पूज्य पिताजी तथा लेखराज कवि के मित्रों में थे। बड़े जिंदादिल व्यक्ति थे। एक बार वर्तन गिरी करके हम लोगों का सविधि आतिथ्य किया, और यह बात हमें पीछे से विदित हुई।

उदाहरण- चित की हम ऊधो जो बातें करें अवकास घफासन पाइहैं जू ; इन तुंग के तुंग तरंगन के उमड़े जल कैसे समाईहै जू । नाम--(२५४३ श्र) शिवदयाल