उदाहरण-
कहाँ जाउँ कासों निज दीनता कहूँ मैं श्याम,
मूँदि लेत नैन कोऊ नेक न निहारो है।
पातक अपार पेखि 'नरकहु मूंदे नाक,
मँदे जम कान हौं मारो नहिं चारो है।
गिनती करी तू 'परमेश' विनती है यहै,
दीन-नाथ,दीन-बंधु बिरद तिहारो है;
सब है विपच्छं कोऊ पच्छ न हमारो गहे,
मोर-पच्छवारो, तुही मोर पच्छवारो है।
नाम-(३४१८) पीतांबर पंडित ।
ग्रंथ-(१) विचार-चंद्रोदय, (२) बाल-बोध, (३) पंच-
दशी की टीका, (४) अष्ट उपनिषत् की टीका ।
विवरण-आप कच्छ-मांडवी-निवासी सारस्वत ब्राह्मण थे। संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे, और वेदांत-विषय पर भाषा में अच्छे-अच्छे ग्रंथ बनाए हैं।
नाम-(३४१६) वागीराम, ग्राम जासोर, मारवाड़।
ग्रंथ-(1) जस-भूषण, (२) जस-रूपक ।
नाम-(३४२०) बहिरम ।
ग्रंथ-सुदामा-चरित्र ।
नाम-(३४२१) भवानीदास रामसनेही साधु, जोधपुर ।
ग्रंथ-(१) भवानीनामन्याला, (२) भतृ हरिशतक (तीन
भाषाओं में), (३) भक्तमाल ।
नाम-(३४२२) भवानीप्रसाद, उपनाम भगवंत ।
ग्रंथ-प्रेमावलि (प्र. त्रै० रि०)
विवरण-ओरछा-निवासी।
नाम-(३४२३) भारतचंद्र राय ।