पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१२७
प्राचीन कविगण

उदाहरण-

कहाँ जाउँ कासों निज दीनता कहूँ मैं श्याम,

मूँदि लेत नैन कोऊ नेक न निहारो है।

पातक अपार पेखि 'नरकहु मूंदे नाक,

मँदे जम कान हौं मारो नहिं चारो है।

गिनती करी तू 'परमेश' विनती है यहै,

दीन-नाथ,दीन-बंधु बिरद तिहारो है;

सब है विपच्छं कोऊ पच्छ न हमारो गहे,

मोर-पच्छवारो, तुही मोर पच्छवारो है।

नाम-(३४१८) पीतांबर पंडित ।

ग्रंथ-(१) विचार-चंद्रोदय, (२) बाल-बोध, (३) पंच-

दशी की टीका, (४) अष्ट उपनिषत् की टीका ।

विवरण-आप कच्छ-मांडवी-निवासी सारस्वत ब्राह्मण थे। संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे, और वेदांत-विषय पर भाषा में अच्छे-अच्छे ग्रंथ बनाए हैं।

नाम-(३४१६) वागीराम, ग्राम जासोर, मारवाड़।

ग्रंथ-(1) जस-भूषण, (२) जस-रूपक ।

नाम-(३४२०) बहिरम ।

ग्रंथ-सुदामा-चरित्र ।

नाम-(३४२१) भवानीदास रामसनेही साधु, जोधपुर ।

ग्रंथ-(१) भवानीनामन्याला, (२) भतृ हरिशतक (तीन

भाषाओं में), (३) भक्तमाल ।

नाम-(३४२२) भवानीप्रसाद, उपनाम भगवंत ।

ग्रंथ-प्रेमावलि (प्र. त्रै० रि०)

विवरण-ओरछा-निवासी।

नाम-(३४२३) भारतचंद्र राय ।