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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९४१ तथा रामनाथ ज्योतिषी (१९५१) ने नवीन विषयों पर कुछ रचना की । यही दशा उमरावसिंह कारुणिक (१९४६) की है । महावीर- प्रसाद (१९५०) ने वैद्यक के विषय पर ग्रंथ-रचना की, तथा गंगाप्रसाद एम्० ए० ( १९५६ ) ने हिंदी तथा अँगरेज़ी में धार्मिक और ज्योतिपीय विषयों पर पांडित्य-पूर्ण ग्रंथ लिखे । आगे से हमारे प्रसिद्ध तथा अप्रसिद्ध कवियों एवं लेखकों के पृथक् वर्णन चलते हैं। जिन सज्जनों के कथन मुख्य भाग में आए हैं, वे विशेषतया महत्ता-युश हैं। जिनके वर्णन चक्र में हैं, उनमें से भी बहुतेरे अथवा कुछ ऐसे ही होंगे, किंतु उन सबके ग्रंथों का 'पठन हम कहीं-कहीं भली भाँति नहीं कर सके हैं । यदि ऐसा होता, तो सभवतः चक्र के भी कुछ लेखक मुख्य भाग में आ जाते । समय लिखने में प्रत्येक कवि के रचनारंभ का ही काल लिखने का प्रयत्न 'किया गया है। प्रायः संवत् एक ही दिया गया है, जिससे प्रारंभ- काल का ही प्रयोजन लेना चाहिए । सं० १९४५-६० के मुख्य रचयिताओं के विवरण समय-संवत् १६४५ नाम-(३४६५ ) ईश्वरी (ईसरी) बगौरा (छतरपुर)। जन्म सं० अनुमानतः १९२० । कविता-काल- -१६४५। विवरण-चतुरभुज नंबरदार के कारिंदा थे, जैसा कि एक स्थल पर श्रापने कहा भी है- "लंबरदार चतुरभुजजू के हम कारंदा आएँ।" श्रापकी रचना छतरपुर में बहुत प्रसिद्ध है, और लोग इसे ग्रामों बहुत गाते हैं । भाषा ठेठ बुंदेलखंडी है।