पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१७७
१७७
मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९४५ पचन बारादरी दौरियन में हो, जावे पाई। स का छटा फुलबगियाँ, हटा देव हरयाई । पिय जस गाय सुनाव न 'ईसुर' जो जिय चाव२ भलाई । --(१४६५ ) देवदत्त शर्मा (महिदेव), फर्रुखाबाद । अ जन्स-काल-सं० १९२४ । रचना-काल-सं० १९४५ के लगभग । ग्रंथ-(१) अंजामवादी, (२) सच्चा मित्र, (३) आर्यमन- रंजन (भजन-संग्रह), (४) शिक्षा-संबंधी पुस्तकें । विवरण-आपका जन्म पं० घासीराम त्रिपाठीजी के यहाँ फ़ ख़ाबाद जिले में हुआ । 'भारत-हितैषी' पन के श्राप जन्मदाता हैं। इसके अतिरिक्त दीनबंधु तथा 'कुर्मी-समाचार पत्रों के प्रकाशक एवं संपादक भी रहे हैं। कुछ काल 'कालाकांकर' से 'हिंदी हिंदो- स्तान' नामक पत्र भी निकाला। कुल मिलाकर लगभग ४० ग्रंथ रचे हैं, ऐसा आपका कथन है। नाम-( ३४६६ ) माधवराव सप्रे (पंडित) बी० ए०। यह रायपुर छत्तीसगढ़ निवासी हिंदी के बड़े उत्साही सुलेखक थे। श्रापका जन्म सं० १९२० में हुआ था। छत्तीसगढ़-मित्र-नामक एक समालोचना-पत्र पं० रामराव चिंचोलकर के साथ इनके संपादकत्व में निकला, जिसमें इन्होंने एक बार हमारे ग्रंथ लव-कुश-चरित्र की तीत्र आलोचना की । आपने 'हिंदी-केसरी'-नामक एक साप्ताहिक पत्र निकाला, और गय की कुछ पुस्तकें भी रची। आप बड़े सज्जन पुरुष १. दौरियन = खिड़कियों में हो। २. चाव - चाहो ।