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मिश्रबंधु

सं०१९४६ पूर्व नूतन $ नाम- (५) कर्म-योग, (६) मनुष्य का धर्म, (७) चरित्र-शिक्षा, (3) विचार-कुसुमांजलि, (६) विधवोद्वाह-मीमांसा, (१०) प्रबंधाको दय । चिवरणा-यापने कानपुर श्रार्य-समाचार का संपादन किया । कानपुर में श्राप अध्यापक और सवल लेखक थे। समाजी लेखकों में श्राप बहून्मुखी दष्टिवाले शास्त्रज्ञ हैं। इनके द्वारा हिंदी में प्राचीन शास्त्रों की ज्ञान-वृद्धि हुई है। आपका श्रम श्लाघ्य है -(३४८६) विहारीलाल जैन (बुलंदशहरी), वाराबंकी। जन्म-काल-सं० १९२४ । रचना-काल-सं० १९४६ । ग्रंथ-(1) वृहत् जैन शब्दार्णव (जैन साइक्लो पीडिया, सं० १६५६)। (२) अग्रवाल-इतिहास (सं० १६७८)। (३) बृहत् विश्वचरितार्णव (अकारादि झम से कई भागों में तैयार हो रहा है)। (१) श्रीजंबुकुमार-नाटक । (५) वृहत हिंदी-शब्दार्गव । (६) हिंदी-व्याकरण के पारिभाषिक शब्द : (७)प्रकीर्णक कविता-संग्रह। अपूर्ण (3) लघु स्थानांगार्णव । (१) विज्ञानाकीदय-नाटक । । (१०) विश्वावलोकन । (११) आश्चर्यजनक स्मरण-शक्ति । (१२) अनमोल चूटी (निज-रचित उर्दू-पुस्तक का हिंदी- भनुवाद. १६७०)।