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मिश्रबंधु

- मिश्रबंधु-विनोद सं० १९४६ नाम-(३४८६ ) रामेश्वरबख्शसिंह ठाकुर । यह बड़े ज़मींदार परसेंहडी सीतापुर के थे। आपका जन्म सं० १६२४ में परसेंहडी में ठाकुर बेनीसिंह के यहाँ हुआ। आपके पिता अच्छे शिव-भक्त और हिंदी-साहित्य के ज्ञाता थे। हमारे ठाकुर साहब ने हिंदी के अतिरिक्त संस्कृत और उर्दू भी पढ़ी । आपने हिंदी-काव्य के तीन ग्रंथ रचे, अर्थात् साहित्य-श्रीनिधि, सोरठा- शतक और स्फुट काव्य । हिंदी में आपका उपनाम श्रीनिधि था। आपने उदू ग़ज़लें और हिंदी में बहुत-सी गाने की चीज़ भी रचर्ची । गान-विधा में आपको अच्छा बोध था । श्राप बड़े उदार और सजन पुरुष थे। आपके छंद अनुप्रास-पूर्ण और उत्कृष्ट हैं। थोड़े दिन हुए आपका शरीर-पात हो गया । उदाहरण-- श्रीनिधिजू मानुख महीपल की कहै कौन, जहाँ देवराज के-से चवर दरयो करें , ब्रह्मा विपशु रुद्र-से परे हैं चरणांबुज मैं, ऋषि-मुनि जाको ध्यान उर मैं धरयो करें । ऐसी आदि शक्ति मातु सोहति सिंहासन पे, जाके रूप मागे रमा रति हडत्यो करें . दौस निसि भानु सित भानु जाकी फेरी करें, । चेरी सम ऋद्धि-सिद्धि दहल करयो करें। १ । राजती पताकी बेस अजब कताकी प्रभा, हेरि हरिता की हरी हरित लता की है पन्नग सुता की और नर बनिता की कहा , अन्य समता की है न काहू देवता की है। जगतपिता की बास अंगिनी सुनैमिष में, श्रीनिधि को दाइनी प्रकास कविता की है j