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मिश्रबंधु

२०६ मिनबंधु-विनोद सं० १६५० बत्तीसी, (७) राज-रहस्य और श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद । उदाहरण- दुपद पुत्र तव शिप्य सुधीरा; बुद्धिसान रण - कुशल गभीरा । पांड नृपति चतुरंगिनी व्यूह चक्र सज तात; कीन्ह उपस्थित रण बिपे युद्ध हेतु अकुलात । नाथ भीम अर्जुन सम सारी; शूरवीर अगणित धनु - धारी। महारथी युयुधान गभीरा नृपति विराटऽरु द्रुपद सुवीरा । सृष्टकेतु जेहि विक्रम चेकितान यश अमित पसारी।

भारी; नाम---(३५०७ अ) सरयूप्रसाद जायसबाल । आपके पिता श्रीवल्लुरामजी अपनी जन्मभूमि, जिला सुल्तानपुर- अंतर्गत बरुपारीपुर गाँव से आकर सुरार छावनी (रियासत ग्वालियर) में पहले बस गए थे, किंतु ग़दर के अवसर पर यह स्थान छोड़कर इन्होंने कनाधर-ग्राम, रियासत ग्वालियर को अपना निवास स्थान वनाया। इसी ग्राम में जायसवालजी का जन्म सं० १९२५ में हुा । अापने वैराग्य, ईश्वर-संबंधी उलाहना, समय की चंचलता, संसार के भोग-विलास की क्षण-भंगुरता आदि विषयों का भी अच्छा वर्णन किया । कहा जाता है कि 'ग्रानंद-सरोज' नामक श्रापकी एक हस्त-लिखित पुस्तक उपलब्ध हुई है । यह उर्दू में विशेष रूप से काव्य-रचना किया करते थे, और हिंदी कविता की अपेक्षा इनकी उर्दू ही की कविता अधिक मात्रा में मिलती है । आपकी मृत्यु १० वर्ष की अवस्था में सं० १९७५ में हुई।