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मिश्रबंधु

.सं० १९५१ पूर्व तूतन २१२ 5 . . अपर रोग हरि हहरि विहरि हरि लोग पठाचत सकल पाप संताप श्राप शिर भार उठावत । असनान-पान सज्जन असन, दरस - परस सुख शूर है। शुभ कातिक 'तुलसी आमलक', जीवन जीवन मूरि है। न्याय और नीति के अवक-चक्र स्यंदन की , जोतिसी प्रकाश-पुंज प्रौड़ पर पाँखें हो; धारमिक नैतिक समाज-वर वृक्षन की, फूल फलवारी भारी स्वच्छ सुचि साबै हो । देश बर-बीरन की रन की विशाल भाल पति औ सुसंपति के राखिने की लाखें हो बूड़ो वह्यो जाय हाय दौरि द्रुत देखौ प्राय एहो रामश्याम तुम्हीं भारत की आँखें हौ । गुरू श्री पुजारी पंडे पंडित भिखारी भन्द, रागी श्री विरागी दागी काम कर चोरी के नौकरी मैं घूस इस राजा प्रजा चूस भए, धनिक पढ़ा3 व्याज अंग जिसि होरी के। 'जोतिसी' दुकान के मुनाफा को न परिमान , धरम विधान दान माल झकझोरी के; गारत न होय कैसे प्रारत स्वरूप यहि, भारत मैं सारे रोजगार मुफ्तखोरी के। वेचन को कंत कतवारिन को पूरी तंत , घर को महंत ' करै वैभव की वरखा । गूढो गेह रक्षक विदेशी वस्त्रभक्षक कै बोहै जोति 'जोतिसी स्वतंत्रता के करखा। . . ।