पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/२३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२३०
२३०
मिश्रबंधु

सं० १९५४ पूर्व नूतन २२५ ग्रंथ-(१) सियवर-सप्तक, (२) हनुमानाष्टक, (३) राम-नाम-माहात्म्य-चालीसा, (४) विन्य-पचासा, (५) झूला- बहार, (६) श्रीहनुमान-यशावली, (७) श्रीसीताराम-होली- बहार, (८) आनंद-निधि-दोहावली (अप्रकाशित), (६) जयकार-शतक, (१०) युगल केलि-गीतावली, (११) श्रीसीताराम- नख-शिख, (१२) शिवाष्टक । विवरण-श्राप कायस्थ-कुलोत्पन्ना बाबू युगल किशोरलालजी की पुत्री थीं । आपका जन्म गया-जिलांतर्गत बिरनामा-नामक ग्राम में तथा विवाह अपहर ग्राम के निवासी बाबू कृष्णदत्तदेवजी के साथ हुआ । श्राप महात्मा श्रीतुलसीदासजी की शिष्य-परंपरा- वाले महात्मा श्रीजानकीशरणजी की शिष्या थीं, और इन्हीं के पास आपने रामायण का अध्ययन किया तथा कविता करनी सीखी। आपको संगीत से भी अनुराग था । इनके अप्रकाशित ग्रंथों की प्रतिलिपि प्रतियाँ उक्त महात्मा श्रीजानकीशरणजी के यहाँ मौजूद हैं। आप एक अच्छी स्त्री-कवि थीं। [ श्रीरामचरणजी, किशोरी- भवन, सुज़फ्फरपुर, विहार द्वारा ज्ञात ] । उदाहरण- कैचों शोभा सर विच विकस्यो सरोज, कैधों सोरह कलान-युत अद्भुत सुचंद है। कैचों विधि निज निपुनाई तै मुकुर रच्यो, देखि ताहि लियो करि मदन पसंद है। कैधों अबधेश फरजंद मन मोहिचे को, सुंदर अनूप पंचबान केरे फंद है। 'गोपनली' कैघों अदभुत श्राब भरो, मिथिलेश-नंदिनी को मुख आनँद को कंद है नाम- -(३५३१) प्रबोधचंद्र, कतरीसराय (गया)। 1