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मिश्रबंधु

सं० १६१६ पूर्व नूतन इनके अतिरिक्त मिश्रजी ने गंगालहरी, गंगाष्टक, महिम्न, शिवतांडव और भामिनीविलास का पच में तथा मार्कंडेय पुराण, देवी चौध- रानी और दशकुमार-चरित्र का गद्य में अनुवाद भी किया। अापने अयोध्या-नरेश, महाराणा प्रतापसिंह, पंडित राधावल्लभ जोशी, अजान कवि, बच्चू मलिक, वालराम स्वामी, उमापतिदत्त शर्मा, कवि गोविंद गिल्ला भाई और दुर्गादत्त परमहंस के जीवन- चरित्र लिखे । फुटकर लेख भी आपके बहुत हैं। उदाहरण में स्थानाभाव से केवल दो छंद यहाँ लिखे जाते हैं । श्राप उच्च श्रेणी के गद्य-लेखक और सुकवि हैं। बार-बार चमकै चहूँघा चंचला री देखु, विप्रचंद्र वारिद हू बारि वरसावै है; पौन पुरवाई बहै पपिहा पुकार पीय, मोरदल कूकि-कूकि मदन जगावै है। ऐसे समै नाही निवहेगो तेरो पुरी वीर, नाहक अकेली बैठि बेदन बढ़ावै है मानि ले हमारी बात बेगि चलु मेरे साथ, जोरि कर श्राजु तोहि कान्हर बुलावै है। कवै सु गंग तीर की निकुंज में निवास के, महेश को प्रणाम के बिसारि नीच श्रास के; कलत्र-पुन देह-गेह-नेह छोड़ि हूँ सवै, उचारि शंभु युद्ध मंत्र होयेंगे सुखी कबै । नाम-( ३५४१ ) गंगानाथ झा डाक्टर, महामहोपाध्याय, एल-एल० ०डी०डी०, लिट। जन्म-काल-सं० १९२५ के लगभग । यह संस्कृत के महान पंडित हैं। श्राप इलाहाबाद-विश्वविद्यालय के नौ वर्प वायस-चैंसलर रहे। आपने संस्कृत के अनेक ग्रंथ रचे