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मिश्रबंधु

सं० १९५७ पूर्व नूतन विवरण-विशेषतया उपन्यास-लेखक । श्राप बड़े ही मज़ाक पसंद सजन हैं। हिंदी-साहित्य सम्मेलन के सभापति हो चुके हैं। विचार आपके पुराने ढंग के हैं। नाम-( ३६४८ ) जानकीशरण 'स्नेहलता' ग्राम सौर दरियापुर, गया। जन्म-काल-सं० १९३२ । कवित-काल-सं० १९१७ के लगभग । अंथ-(१) विरहानल, ( २ ) श्रीहरि-कीर्तनपदावली, (३) गवाटक, (४) श्रीहंसकला-सप्तक, (१) नवीन भक- माल (१००० छप्पय अप्रकाशित), (६) मानस-उत्तर पक्षा- वली ( ३०० दोहे, अप्रकाशित), (७) स्फुट रचनाएँ । विवरण-आप कायस्थ-कुलोत्पन्न बाबू श्यामदासजी के पुत्र हैं। आपके पिताजी एक भक्त पुरुष थे, और इन्हीं से आपने साहित्य का ज्ञान तथा रामायण का परंपरागत अर्थ प्राप्त किया है। यह महात्मा श्रीतुलसीदासजी के शिष्य-परंपरा में से हैं । निम्नलिखित छंदों से इस बात का परिचय मिलता है। विन किशोरीदत्त को ग्रंथकार हो दीन , अल्पदत्त पठि ताहि सों चिन्नकूट महँ लीन । रामप्रतापहिं सो दई लहि तातें शिवलाल , दत्त फनीशहि जान निज सो दीन्यो सुखमाल । (मानस मयंककार शिवलाल पाठक) शेषदत्त सन तासु सुत लहि जानकीप्रसाद , तिन प्रति श्याम सुदासजी पढ़े सहित प्रहलाद । जिन सुत मानस अर्थ युत्त भावादिक शुभ रीति , पढ़े पढ़ाए करि कृपा 'स्नेहलता' हि सप्रीति । ( जानकीशरण 'स्नेहलता')