पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/२६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२६०
२६०
मिश्रबंधु

सं. १९६० पूर्व नूतन . नाम-(३५६६) इंदुबालादेवी, वी० ए० । कविता-स्फुट छंद। उदाहरण- तुझे बुलाऊँ धरूँ सामने तेरे मैं क्या अपनी भेट तुझे रिझाऊँ कैसे प्रभुवर ! यह चिंता करती आखेट । मेरी छिन्न-भिन्न वीणा में नहीं प्रभो ! मीठी झंकार , मुरजी में मृदु तान नहीं है, है केवल भीषण हंकार । शब्द-शब्द में भरा हुआ है मेरा रोदन और विलाप . हो करुणेश ! इसे सुन करके नहीं पसीजोगे क्या आप ? नाम-(३५६७ ) कन्हैयालाल माथुर । जन्म-काल-सं० ११३८ । कविता-काल-सं० १९६० । यह कायस्थ महाशय माथुर स्टेशन 'बसवा', रियासत जयपुर (राज- पूताना ) के रहनेवाले हैं। (इलाके राज जयपुर में हमारा गाँव है वसबा-नहीं आबोहवा में जिसका सानी शह या कस्बा) व्रजभापा तथा उर्दू में कविता किया करते हैं। इनके पिता किशोरीलालजी तथा पितामह गूजरमलजी कविता के रसिक थे । इनकी भी बचपन से कविता की ओर रुचि रही । आप सैकड़ों ग्रंथ प्राचीन कवियों के हस्त-लिखित व मुद्रित देखकर संग्रह करते रहते हैं। इनके मकान बसवा' के पुस्तकालय में ५-६ हज़ार के लगभग पुस्तकें हैं । इनके रचे हुए हिंदी में 'माथुर-प्रेम-पताका' तथा उर्दू में नावेल 'तरंग नौजवानी' हैं । आप श्रीविष्णु स्वामी संप्रदाय के शिप्य हैं । कुछ दिनों रियासत जयपुर की पुलिस में थानेदार रहे हैं। उदाहरण- आपस मैं न करो चुग़ली, न करो अपने मुख आप बड़ाई; नाहि हँसो अँगहीनन को, न लखो पर-नारिन सुंदरताई । .