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मिश्रबंधु

सं० १९५० पूर्व नूतन २८१ . विवरण-श्राप रीवा-राज्य में संस्कृत-अध्यापक हैं। हिंदी तथा संस्कृत, दोनो में श्राप कविता करते हैं। श्रापकी रचनाएँ रमेश' अथवा 'अध्यापक' उपनामों से यदा-कदा अंकित रहती हैं। [श्रीयुत भानुसिंह वाघेल द्वारा ज्ञात ] ! उदाहरण- श्रायो है असाढ़ गाढ़ पीतम दियोगिन को, छायो नभ मेव शोर चातक सुनायो है; नायो है नवीन बार दारिद त्यों बार बार, सरस सुगंध महि मंडल पै छायो है। छायो है सुवास त्यों बयूटी छटा क्षोणी सध्य, मोर-गण शोर करि आनंद मचायो है चायो है न नेक चित्त चंचला चहूँचै देखि, दरद दवायी मोहिं पीतस न आयो है। नाम-(३६८६) लालजी वंदीजन, असनी, फतेहपुर । विवरण-साधारण श्रेणी । यह महाशय वैरीसाल के वंशधर है। श्राप महाराजा रीवी के यहाँ नौकर हैं। नाम-(३६८७) शत्रुजीतसिंह ( दीवान)। ग्रंथ-(1) अमर-वंश-रत्नाकर, (२) चंदब्रह्म भरतु । विवरण-छत्रपुर-नरेश सहाराजा विश्वनाथसिंहजूदेव के पितॄन्य । नाम--(३६८८)शीतलप्रसाद ब्रह्मचारी । थ-(१) गृहस्थ-धर्म, (२) छतढाला की टीका, (३) नियमसार की टीका, (४) अनुभवानंद । विवरण- -श्राप लखनऊ-निवासी अग्रवाल जैन थे। समाज की सेवा निःस्वार्थ भाव से करने के वास्ते श्राप प्रायः १६५५ में गृहत्यागी भी हो गए।