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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९६१- तथा होना तथा उनके सब ग्रंथ बनना शेष है। अतएव उत्तर नूतन काल- वाले कवियों के विषय में जो कुछ कहा जाय, उसमें कुछ अंश भविष्य की भाशा का भी समझना चाहिए । कुल मिलाकर इस काल उप- न्यास, नाटक पद्य-रचना आदि की वृद्धि दिखाई पड़ती है, विविध विषयों का फैलाव अच्छा हुआ है । इस काल के मुख्य रचयि- ताओं में जयशंकरप्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, मनन द्विवेदी गजपुरी, स्वामी सत्यदेव, रामदेवजी, विश्वेश्वरनाथ रेउ, गोविंदवल्लभ पंत, जी० एस्. पथिक, गुलाबराय गुप्त, रामनारायण शर्मा ( १६७५), लौटूसिंह, मोहनलाल महतो आदि गिनाए जा सकते हैं। छेदाशाह सैयद (१९६२) तथा मोहम्मद वजीरखाँ इस काल के श्रेष्ठ मुसलमान लेखक हैं। स्त्री-लेखिकाओं या कवियों में मुख्यतया रानी रामप्रियाजी (१९६२), यशोदादेवी (१९६५), सरस्वतीदेवी (१९६५), रमादेवी त्रिपाठी ( १६६६ ), रामेश्वरीदेवी नेहरू ( १९६७ ), हेमंतकुमारीदेवी ( १९६८), चंदाबाई (१९७०), प्रेमकुंवरि ( १६७० ), सुभद्राकुमारी चौहान ( १९७० ) तथा रनावती शर्मा ( १९७२ ) के नाम इस काल पाते हैं । इनमें से सुभद्राकुमारी चौहान तथा हेमंतकुमारीदेवी की कविता एवं गल्पों की अच्छी प्रसिद्धि है, और रामेश्वरी नेहरू सुलेखिका अथच संपादिका हैं । उपर्युक्त इतर देवियों की भी रचनाएँ कभी-कभी उच्च कोटि की होती हैं। बड़े हर्ष की बात है कि हमारा स्त्री-समाज इस छोटे-से काल में इतनी देवियाँ साहित्य-क्षेत्र में उपस्थित कर सका। इन तथा ऐसी ही अन्य बातों से भारतोन्नति की आशा पाई जाती है। भक्तों में इस काल केवल रामजीशरणविंध्याचलप्रसाद (१९६४) का नाम आता है । यह समय देव-भक्ति का न होकर देश- भक्ति का है । देश-भक्तों तथा राजनीतिज्ञों में कालूराम द्विवेदी (१९६२), स्वामी सत्यदेव ( १६६२), मन्नन द्विवेदी ( १६६३.),