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मिश्रबंधु

सं० १९६१-७५ उत्तर नूतन' अंतिम दो महाशय गद्य-काव्य के भी भारी रचयिता माने जा सकते हैं। छायावाद का कथन पहले अलंकार द्वारा होता था। इसे अन्योक्ति कहते हैं । कई कवियों ने अन्योक्ति पर कविता की है। व्यंग्य का विपय भी इसी से मिलता है। प्रतापसाहि ने व्यंग्यार्थ- कौमुदी-नामक ग्रंथ ही बनाया था, और बाबा दीनदयाल गिरि ने अन्योक्ति-कल्पद्रुम रचा। कबीरदास ने उल्टवासी आदि में बहुत कुछ अन्योक्ति-गर्मित रचना की। जायसी, कुतबन शेख आदि अनेकानेक सूफी कवियों ने अपने कथा-प्रासंगिक ग्रंथों का कथा- विः छायावाद-गर्भित रक्खा । ब्लेक, उमर तैयाम आदि भी ऐसे ही कवि । वर्ड सवर्थ, शेली प्रादि ने भी कुछ इसी प्रकार के कथन किए । कीट्स ने प्रकृति और सौंदर्य का अच्छा अवलोकन किया । महाकवि रवींद्र महाशय भी कुछ ऐसी ही रचना करते हैं। उत्तर नूतन परिपाटी काल में ही वर्तमान छायावाद का प्रचार हिंदी में हुआ । जयशंकर प्रसाद, मोहनलाल महतो तथा सुमित्रानंदन पंत इस काल के मुख्य छायावादी कवि हैं । निरालाजी भी ऐसी ही रचना करते हैं, किंतु केवल एक साल के अंतर के कारण इनका विवरण श्रागे के अध्याय में श्रावेगा । रहस्यवादी कवियों में कुछ-कुछ आध्यात्मिकता, सांप्रदायिकता श्रादि प्रायः रहती हैं, यद्यपि अन्योक्ति के लिये किसी विशिष्ट विषय की आवश्यकता नहीं है। सबसे प्राचीन छायावादी साहित्य स्वयं वेद भगवान में है । बहुत-से वर्तमान समालोचक तथा प्राचीन लेखक हमारे छायावादी कवियों के निंदक हैं। हमने भी बहुतेरी छायावादी रचनाओं में असमर्थ तथा अप्रसाद दूपण पाए हैं। बहुत-से ऐसे कवि विचार-धारा इतनी दूर बाँध ले जाते हैं कि उनके शब्द उतने ऊँचे भाव-प्रदर्शन में अक्षम रहते हैं, जिससे रचना में असमर्थ दूषण ा जाता बहुतेरे कवि ऐसे शुष्क प्रकार से वर्णन करते हैं कि रचना में अलौकिक 1