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मिश्रबंधु

सं० १९६१ उत्तर तूतन ३३३ स्फटिक-शिला-आसीन राम-वैदेही ऐसे- निर्मल सर में नील कमल नलिनी हो जैसे। निज प्रियतम के संग सुखी थीं कानन में भी प्रेम-भरा था वैदेही के आनन में भी। मृग-शावक के साथ मृगी भी देख रही थी सरल विलोकन जनक-सुत्ता से सीख रही थी। भूलि-भूलि जात पद-कमल तिहारो, कहो, ऐसी नीच मूढ़ मति कीन्ही है हमारी क्यों? धाम के धसत काम-क्रोध-सिंधु-संगम में मन की हमारी ऐसी गति निरधारी क्यों ? झूठे जग लोगन में दौरि कै लगत नेह, साँचे सच्चिदानंद में प्रेम ना सुधारी क्यों ? विकल बिलोकत न हिय पीर मोचन हो, एहो दीनबधु ! दीन-बंधुता बिसारी क्यों ? नाम---( ३८८३) जानकीप्रसाद द्विवेदी। इनके पिता पं० रामगुलाम कड़ाकोटा, जिला सागर, मध्यप्रदेश के रहनेवाले हैं। इनका जन्म सं० १९३६ में हुआ। कविता करना ही इनका व्यवसाय है । निग्न-लिखित ग्रंथ इनके बनाए हुए हैं । मुद्रित ग्रंथ-(9) जानकी-सतसई, (२) मित्र-लाभ, (३) शिव-परिणय, (४) राक्षस-काव्य का अनुवाद, (५) घटखर्पर काव्य, (६) नर्मदा- माहात्म्य. (७)शृंगार तिलक, (८) वेश्या षोड़श । अमुद्रित- (१) साहित्य-सरोवर, (१०) काव्य-दोप, (११) भंडौवा-भंडार, (१२) काव्य-कौमुदी, (१३) नारी-नख-शिख, (१४) प्रकृति- प्रमोद, (१५) व्यग्योक्लिविलास, (१६) अन्योक्ति-पचासा, (१७) राधा-कृष्ण-संवाद, (८) रंभा-शुक-संवाद, (१९) विनय-शतक, (२०) समस्या-पच्चीसी, (२१) सानसावन, (२२) महेंद्-मंजरी ।