प्राचीन कविगण २७ ज्ञान नहीं हो सका है। भाषा आदि से सं० १०५० के लगभग जान पड़ते हैं। राग शबरी पेखु सुअणे अदश जइसा, अंतराले मोह तइसा । ध्रु. मोह-विमुक्का जइ माणा, तवे तूटइ अवणा गमणा । ध्रु. नौ दाढइ नौ तिमइ न च्छिजइ, पेख मोअ मोहे बलि-बलि बाझई । ६० छान मात्रा का ससाणा, वेणि पाखें सोइ विणा । ध्रु. चित्र तथता स्वभावे पोहिल, भणइ जअनंदि फुडण अणण होइ । ६० नाम-(3) शांतिपा ( रत्नाकर शांति) (सिद्ध १२) ! समय-सं० १०७० के लगभग । ग्रंथ--सुख-दुःखद्वयपरित्यागदृष्टि । विवरण---यह महाशय मगध के ब्राह्मण-कुल में उत्पन्न हुए थे। बहुत बड़े विद्वान् थे। सिद्धनाडपाद का इनका संग रहा। कहा जाता है, सिद्धों में इनके बराबर कोई दूसरा पंडित नहीं था । महाराज महीपाल (१०३१-१०८३) के समय में विक्रम- शिला, बिहार में पूर्व द्वार के पंडित बने । इनकी आयु १०० वर्ष से अधिक की कही जाती है। भोटका मरवालोचवा इन्हीं का शिष्य था, और तिब्बत के सर्वोत्तम कवि और सिद्ध जे-चुन् भि-ला रे-पा ( दीक्षा सं० ११३३, मृत्यु ११७६ ) इनके चेले थे। चर्यागीति से इनकी गीति लिखी जाती है-