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मिश्रबंधु

२८ मिश्रबंधु-विनोद राग रामक्री १५ सन- संबेत्रण सहश्र विश्रारें, ते अलक्ख लक्खणन जाइ । जेजे उजूबाटे गेला अनावाटा भइला सोई । ध्रु. कुले कुल मा होइ रे चूड़ा उजूवाटे संसारा, वालभिण एकुवाकु ण सुलह राजपथ कंटारा । J. मात्रा मोहा समुदारे अंत न बुझसि थाहा, भागे नाव न भेला दीसत्र भांति न पुच्छसि नाहा । 5. सुनापंतर उह न दिलइ भांति न वाससि जाते, एपा अट महासिद्धि सिज्झए उजूवाट जा अंते । ध्रु. बाम-दाहिण दो बाटाच्छाडा शांति बुलथेउ संकलिउ, घाटन गुमा खड़तड़ि नो होइ आखि बुजिन बाट जाइउ । ६. राग शीवरी २६ तुला धुणि-धुणि आँसुरे आँसु, आँसु धुणि-धुणि णिखर सेसु । तउपे हेरुन ण पाविनइ, सांति भणइ किण सभावि अइ । ध्रु. तुला धुणि-धुणि सुने अहारिउ, पुन लइयां अपना चटारिउ । ध्रु. बहल बट दुइ मार न दिशन, शांति भणइ बालाग न पइसन । ध्रु० काज न कारण जाहु जाति, सँए सँवेत्रण बोलथि सांति । ध्रु. नाम-(%) जन्जल। समय-सं० १३५७ । विवरण-महाराणा हम्मीरसिंह मेवाड़ के सेनापति थे। उदाहरण--- "पत्र भरु दर भर धरणि तरणि रह धुल्लिा झपिन कमठ पिट्ट टरपरिन मेरु मंदर सिर-कंपिन। कोह चलिन हम्मीर वीर गत्र-जूह सँजुत्ते किअउ कह श्राकंद सुच्छि म्लेच्छह के पुत्ते । . 3 9