पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/३७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३७०
३७०
मिश्रबंधु

सं० १६१५ उत्तर नूतन . 3 उदाहरण एकहि भानु प्रकाशित है जग दूरि करै तम-राशि सदा ही। जीव सवै भयभीत हैं मृगराज बसें इक कानन माहीं। त्यों ही शमानद एक हि सूर दलै अरि के गण शंकत नाही एकहि धर्म प्रचार करें जग धार्मिक जो न बसै छल छाहों ॥ १ ॥ धार्मिक भूप जबै जग के निज ध्यान राजा-हित माहिं धरेंगे त्योहिं शमानद वीर कुमार सबै मिलके पुरुषार्थ करेंगे। दीन दशा लखि के तबहीं जगदीश कृपा करि दुःख हरेंगे रे मन साहसि ! साहस छोड़ न, साहस से सब काज सरेंगे ॥ २ ॥ नाम-(३६१% ) संत निहालसिंह । जन्म-काल-लगभग सं० १९४०१ रचना-काल-१६६५। ग्रंथ-कई प्रोजस्त्री, गंभीर, गोपणा-पूर्ण लेख । विवरण --आप अमेरिका, योरप, जापान आदि हो पाए हैं। ज्ञाता पुरुप हैं। नाम-(३६१६ ) सरस्वतीदेवी। यह नगवा गाँच जिला आज़मगढ़ के कवि त्रिपाठी रामचरित्रजी की पुत्री हैं । इनके छंद कानपुर के रसिक-मित्र में छपा करते थे। इनके पिता दुमराँव महाराज के यहाँ रहते थे। इनके बनाए (1) नीति-निचोड़, (२) सुंदरी-सुपंथ, (३) वनिता-बंधु और (४) शारदा-शतक ग्रंथ अच्छे हैं। इनमें से नीति-निचोड़ हमने देखा है। उदाहरण-- ऊधव, जाय कहो उनसों पठई पतिया जिन जुक्ति भरी है: ज्ञानी वही जग जाहिर है, जिनसों नहिं नायन हू उबरी है। साधन योग स्वतंत्र समाधि विरल भरी जग सों कुबरी है। ए व्रजवाल बिहाल महान बियोग की मारु प्रचंद परी है।