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मिश्रबंधु

सं० १९६७ उत्तर नूतन ३७३ पुरातत्त्व-कार्य से बड़ा प्रेम है, और बड़े परिश्रम से प्राचीन मुद्रा- लिपि, कारीगरी, मूर्तियाँ, चित्र आदि विषयों का इन्होंने अच्छा ज्ञान. संपादन किया है। इनकी अनेक लेख मालाएँ तथा कविताएँ साम- यिक पत्र-पत्रिकाओं में निकल चुकी हैं, और निकला करती हैं। आपने 'शैव सुधाकर' नामक संस्कृत-ग्रंथ की आपा-टीका लिखी, तथा जोधपुर-नरेश जसवंतसिंहजी-कृत वेदांत-पंचक और महाराजा मानसिंहजी-रचित कृष्ण-विलास-नामक ग्रंथों का योग्यता-पूर्वक संपा- दन किया है। आपकी सहत्व पूर्ण ऐतिहासिक रचना 'भारत के प्राचीन राजवंश' नामक ग्रंथ है। आपका बम, पुरातत्त्व-विभाग पर, उपयोगी तथा श्लाघ्य है। नाम--( ३६२८) शिवप्रसाद गुप्त (बाबू) काशी-निवासी। जन्म-काल-लगभग सं०१९४२ । रचना-काल--सं० १९६७ । ग्रंथ-पृथ्वी-प्रदक्षिणा, स्फुट । विवरण- 'श्राज दैनिक पत्र के स्वामी । श्राप बनारस के बड़े रईसों में हैं। हिंदी तथा कांग्रेस के बड़े उत्साही कार्यकर्ता हैं । देश- हित के कारण कई बार जेल जा चुके हैं। हिंदी-विद्यापीठ कई लाख लगाकर स्थापित की । वह एक प्रकार से ऐसा विश्व- विद्यालय है, जिसमें निवास करते हुए छात्र विद्याध्ययन करते हैं । नाम-( ३६२६ ) सूर्यप्रसादजी त्रिपाठी कवि । आपका जन्म संवत् १६४२ विक्रमी में बाराबंकी (यू० पी०) के समीप ठाकुरपुर-नामक ग्राम में हुआ ! अात्र कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं । आपके पिता का शुभ नाम पं० भागवतप्रसादजी था । श्रापकी स्वतंत्रता आपके अनुज पं० श्यामसुंदरजी की कर्तव्यपरायणता तथा सहनशीलता पर बहुत कुछ निर्भर है । छंद अच्छे बनाते हैं । हम लोगों के मित्र हैं । साहित्यिक सभाओं में जनता आपका मान