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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९६० करती है। आप भीम कवि कहलाते हैं। साहित्य मज़ेदार वर्तमान विषयों से पूर्ण बनाते हैं। उदाहरण- 1 भर दे उसके प्रान में जीवन-शक्तिः अतुल; जिसके तप से विश्व में खिला शांति का फूल । खिला शांति का फूल आज वह तेरा योगी पड़ा यहाँ बेचैन बना अनशन का रोगी। अरे ईश, हो प्रकट भक्त के संकट हर दे देकर उसको ब्रान सीप में लागर भर दे। कायर-कलंकियों की अाशा पै कठोर बन-- निपट निराशा का विषम बिप नाए देत; छाए देत छम छाँह कवि-कोबिदों पै मान, माला गुणियों के कल-कट में पिन्हाए देत । लेखनी तुम्हारी मिश्रबंधु, हिंदियों के लिये- हिंदी के बितान बर विश्व में तनाए देत j खोजि-खोजि कृतियाँ पुराने कवियों की उन्हें--- गौरव-सुधा से सींचि अमर बनाए देत । कोई कहे हिंदी की महानता के सागर में अोज मुकुता की यह सीप शुभ्र साँची है ; कोई कहे कवियों की कल्पना में भारती के- भावों की छिटक रही छटा जग जाँची है। किंतु मिश्रबंधुजी, कहेंगे हम भारत में- भ्रांति रजनी ने जहाँ श्याम रेख खाँची है; प्रतिभा महान ये तुम्हारी लेखनी की वहाँ- गौरव दिनेश की किरण बन नाची है ।