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मिश्रबंधु

३८२ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९७० 'कवींद्र-वाटिका', 'काव्य-पताका' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। - उदाहरण- मोतिन की मंग है सुगंग नाहि नेत्र नाहि- तीसरो सुकुकुम को टीको है मथान में ; चंद्र नाहीं भाल है, सुशेप नाहीं काली वेणी, बीप नाहीं श्रोपै लरी लेवण गलान में। मैं हूँ बाला पीवत श्रो खावत धतूरा नाही, वाटिका की सैर करूँ पीवहू के ध्यान में मैन तू तो मारे मोहि हर जाने हूँढत है, बिहरत वीजुरी कनक-लतिकान . स्फुट सोरठा 3 कामिनि-नैन कटार, कोमल हिय नर कामि को पैठ जाति है पार, धारे घंक चितौन की। विद्या बसी विदेश, धर्म-कर्म घर पै नहीं; तीन विना चतुदेश, दशा जु विगरी देश की । नाम-( ३६४३ ) चंदाबाई जैन (पंडिता)। जन्म-काल-सं० १९४५ ग्रंथ-(१) उपदेश-रलमाला, (२) बालिका-विनय, (३) सौभाग्य-रत्नमाला, (४) निबंध-रत्नमाला, (५) कर्तव्य-रत्नमाला। विवरण-अाप माननीय नारायणदासजी, शृंदावन, की पुत्री हैं। आपने संस्कृत तथा जैन-साहित्य का अच्छा अभ्यास किया है। जैन-महिलादर्श की संपादिका हैं । श्रारा में आपने अपने ही व्यय से एक जैन-बालाश्रम खोल रक्खा है, जिसमें बहुत-सी बालिकाएँ शिक्षा ग्रहण करती हैं।