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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९७१ (खास बुंदेल खंडी शब्दों में) बुंदेलखंड का श्रावण (वरवै) उदाहरण- साउन समयो मोहन नभ घनश्याम ; पच्छिम धरें सुरंगी रंग अभिराम । बैहर चलत पुरविया धीमी चाल ; हरियल भूमि लुभनिया हिलुरत ताल । राखी भोर भुजरिया दिन त्योहार ; गाँव-गाँव सब भारत निज घर द्वार । बिटियाँ रुचि-रुचि रचती माँदी आँग; धानी सुरंग चुनरिया सेंदुर माँग । धानी केरई कोकई सुही सुरंग ; गलियन साउन उमगो रंग-बिरंग। माथे पीरि भुंजरिया, हिरदय माल ; साउन गाउत · चलती सिंधुर-चाल । ढपला बंशी बज रए महलन चौक ; सुन-सुन ज्वानन उमगत मन में सौंक । भर-भर तुपके साँके फेंट सँभार Vछन ताव चढ़ावत कल हर बार । साउन समय हमारो बहुतइ ठीक; खेलन बीर बनाउन सच्ची लीक । बीर भूमि रस पूरित सुख की मूल; खंड बुंदेलकि रज-रज पावन फूल । नाम--(३६६२) गुलाबराय एम० ए०, एल-एल० बी० छतरपुर-राज्य, बुंदेलखंड । 3