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मिश्रबंधु

सं० १९७१ उत्तर नूतन जन्म-काल-सं० १९४४ । रचना-काल--सं. १९७१ । ग्रंथ-(१) शांति-धर्म, (२) फिर निराशा क्यों, (३) मैत्री-धर्म, ( ४ ) कर्तव्य-शास्त्र, ( ५ ) नवरस, ( ३) तकशास्त्र (तीन भाग), (७) पाश्चात्य दर्शन, (5) ठलुआ-क्लस, (६) स्फुट लेख तथा कविताएँ, (१०) दर्शन-शास्त्र का इतिहास । विवरण-यह वैश्य-कुलोत्पन्न बाबू भवानीप्रसादजी के ज्येष्ठ पुत्र हैं। इनका जन्म इटावा नगर में हुआ, किंतु पैत्रिक गृह जलेसर, जिला एटा है। श्रागरे में इन्होंने एम० ए० तथा एल-एल० बी० की उपा- धियाँ प्राप्त की । इनकी स्वाभाविक रुचि तर्क तथा दर्शन-शास्त्र में विशेषतया रही है । यह छतरपुर-राज्य में सं० १९६६ में पाए। स० १६७३ में महाराजा साहब छतरपुर के प्राइवेट सेक्रेटरी नियुक्त हुए, और पीछे कुछ काल राजा अवागढ़ के यहाँ आप दानाध्यक्ष रहे। तर्क-शास्त्र पर आपको हिंदोस्तानी एकेडेमी से ५००) का पुरस्कार मिला। बड़ी शांत-प्रकृति के पुरुष हैं, परंतु दर्शन-शास्त्र के पूरे प्रेमी होने पर भी हास्य-रस पर भी प्रथ-रचना करने की योग्यता दिखला चुके हैं। हमारे प्राचीन मित्र हैं । उदाहरण निकल दुखिया का जीवन-प्रान मृदुल प्राभा से सजा प्रभात । श्राश के रथ पर श्राया निमिप में हुअा जगत विख्यात । नाम-(.३६६३ ) जगदीश झा 'विमल', ग्राम कुमेढा, जिला भागलपुर। जन्म-काल-भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी, सं० १९४८। रचना-काल-स. १९७१। . 7