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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद कवि जयराम ने समस्या समझकर इस प्रकार पूरा किया था- "तै तरवारि गही कर वारिज, चारि दिशा अरि राजजू भागे; शाहबली तव बाहुन को जसु, राहु शशी बस राहन लागे।" नाम-(३८) सुखलाल, महाराष्ट्र प्रांत । ग्रंथ -स्फुट । कविता-काल-सं० १७१० । विवरण- यह राजा शाहजी के दरबारी कवि थे। इन्होंने शाहजी का मीर जुमला के साथ युद्ध और रायलू की चढ़ाई का वर्णन किया है। उदाहरण----- देखियत नैन सोई बैन बोलियत अहैं, सुनो लाह मकरंद जंत कलरन की। बेडर कहावते सो सब ही डरन लागे , डारत तरंग पौन पात मानो धन की। नास-(४११) अज्ञात । रचना-काल--१७१५ । ग्रंथ-(१) राठौड़वचनिका, (२) राठौड़-कुल-कवित्त । विवरण-यह डिंगल-भाषा-कान्य है । सं० १७१२ में जालौन के राठौर रतनसिंह का जो युद्ध औरंगजेब से हुआ था, उसका वर्णन ग्रंथ में किया गया है। इसमें हिंदी-छंदों के अतिरिक्त कुछ गुजराती पच भी हैं। दूसरे ग्रंथ में राठौड़-वंश की उत्पत्ति, उसके गुरु, प्रबर, कुलदेवी इत्यादि का उल्लेख है। नाम-(.४१४) बाल कवि । रचना-काल-सं० १७१५ । ग्रंथ-केशव-बावनी। विवरण-इन्होंने उक्त ग्रंथ अपने गुरु जैन-जती श्रीकेशवाचार्य बनाया है। ग्रंथ छप्पय छंदों में है।