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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद वर्णन रचना-काल-सं० १७४० के लगभग । विवरण-ग्रंथ में श्रीकृष्ण के मथुरा-गमन के अनंतर ब्रजवालाओं की विरह-व्यथा एवं उद्धव-संदेश का कथन है । भाव, भापा तथा न उच्च कोटि के कहे जाते हैं। नाम-(५१६) रंगनाथ स्वामी निगडीकर । मृत्यु-काल-सं० १७४१ । ग्रंथ-स्फुट कविता। विवरण- -श्राप श्रीरामदासजी के साधु-पंचायतन में से एक थे । आपको बाल्यावस्था से ही दंड, कुश्ती ग्रादि व्यायाम-संबंधी खेलों का शौक था। कहा जाता है, जब १४ वर्ष की आयु हो जाने पर आपके विवाह की तैयारी हुई थी, तब आप बद्रीनाथ को चल दिए । इस यात्राले लौटने पर टेहरी के राजा ने आपका उपदेश ग्रहण करके आपको घोड़े, हथियार आदि देकर सम्मानित किया। अप ऊँची श्रेणी के पंडित तथा राजयोगी साधु थे। प्रसिद्ध पंडित श्रीधर स्वामी आपके वंशज थे। उदाहरण- देखा नाथ सुपाला जग सों देखा नाथ गुपाला । कलियुग में अवतार लिया है, आप रूप अविनासी ; चारों सुती सेवा करतीं, होकर उसकी दासी। घट-परवट मों श्राप रमे हैं, आप गुरू अरु चेला। जोग जुगत मों खेले नित ही, भूठे घर में झूले छह अठरा का ले विचार वर, पंडित होकर डूले । नाम-(५२६) देवदास, दादेगाँव (महाराष्ट्र प्रांत)। ग्रंथ-स्फुट। कविता-काल-१७४३ । H