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मिश्रबंधु

सं० १९८३ उत्तर नूतन नाम--(४३६१ ) रामचंद्र शर्मा 'काव्यकंठ', तरी (आरा)। जन्म-काल-सं० ११५ विवरण-याप सुकवि है। उदाहरण- विवस बाटिका हाय ! हुई- कोमल कलिकाएँ धूल गिरी; सुंदर सुमनों में गंध नहीं, लोनी लतिकाएँ हाय ! मरौं । मालिन ! क्यों तेरे केश खुले ? मुख की प्रतिभा क्यों क्षीण हुई ? क्यों शोक-तप्त आँसू वहते ? 'ऐं सिसिक रही, क्यों दीन हुई ? तेरा उपवन है उजड़ गया, यह व्यथा, विकल तुझको करती ! था सींचा जिसको प्रणय-सुधा से--- वही जलती! यह दृश्य देखती आँखों से- पर हृदय विदीर्ण हुना जाता ! मंजुल मधु-स्निग्ध पराग पुष्प का- मधुप चूसता मदमाता! तेरे साली का पता नहीं- क्या घोर नोंद उसको भाई ? वंदन-ध्वनि से उस निद्रित को--- तू सखि न जगा अब तक पाई। नाम-(४३६२) रामवृक्ष शर्मा, बेनीपुर ग्राम (डाकखाना रूनी सैदपुर), जिला मुजफ्फरपुर । अनल-ज्वाला - -