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मिश्रबंधु

उत्तर नूतन ५६५ . मत घोल; उदाहरण-- पूर्वस्मृति पूर्व स्मृति क्यों कोमल हृद पर भीषण धातें करती हो मधुर विगत बातों को रह-रह कानों में क्यों भरती हो। मंगलमयी प्रेम-प्रतिमा के संग विहरने की बाते; वार-धार सत याद रा तू. प्राण हमारे अकुलाते। जगदीश्वर जब किसी जीव की है प्रिय वस्तु हड़प लेता; अच्छा होता प्राजीवन-हित, तुम्हें विदा भी कर देता। विपंची से विपंची! रस में विप हृदय-दीन जग-सम्मुख अपने मन की बात न खोल । सुनकर तेरी व्यथा सूद नर करते हैं परिहास कौन सांत्वना देगा तुमको है झूठी यह छोड़ सभी समता सुरलय को छिन्न-भिन्न कर तार; व्यथित हृदय का लूक भाव से करो व्ययः उद्गार । समय-संवत् १९८४ नाम-( ४३५५) जयनारायण झा 'विनीत', विद्यालंकार, विशारद, ग्राम वैनगी-नवादा, जिला दरभंगा। जन्म-काल-सं० १९१९ रचना-काल-सं० १९८४ । ग्रंथ-(1) घननाद-वध, (२) दूत श्रीकृमा, (३) वीर- विभूति, (४) महिला-दर्पण, (५) कुंज और (६) माला ( पद्य-संग्रह) विवरण-श्राप मैथिल ब्राह्मण पं. रघुनंदन झा के पुत्र हैं। कविता अच्छी करते हैं। . श्रासा