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मिश्रबंधु

मिशवंधु-विनोद सं० १९८४ उदाहरण बहता वेड़ा लगा धा करने में गार। छवि की मादकत्ता में विस्मृत हुए अन्य व्यापार, न करने पाया तनिक विचार । सका कर स्वागत का न विधान, जुटाया नहीं जरा सामान | व्यस्त रहा सजने की धुन में भूल गया संसार, सका न हो समुचित प्राचार । लगा था करने में भंगार, स्वयं राजन् ! कितने ही बार, पधारे तव तक मेरे शून्य भवन में मुझे व्यस्त लख चले गए हर बार, नहीं हो सका जरा सत्कार। मगर मेरे सारे अरमान, हुए अवलों नम सुमन समान, अलंकार ये साजन बेड़ी कड़ियों के हैं तार, मोह खल का अमोष हथियार । यह श्रृंगार न स्वर्ण सदन है भीषण कारागार, महामाया का सैरव द्वार। समझकर हूँ बेसमझ अजान, अभी भी है प्रिय मस अरमान । जो है अंतर डाले बाधक मिलने में सुख सार, उन्हें ही करता अब भी प्यार । करो अब आ खुद पूर्ण कर अभिलाषा सुकुमार।