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मिश्रबंधु

सं० १९८८ उत्तर नूतन नाथ ! पहन लो बरवल मेरा अात्म समर्पण हार , लगा दो वहता वेदा पारं। नाम-(४३६६ ) जैनेंद्रकुमार जैन, दिल्ली-निवासी। जन्म-काल-लगभग सं० १९६०। रचना-काल-सं० १९८४ ग्रंथ---परख-वातायन (कहानियों का संग्रह ) । विवरण---इन्हें १९ में हिंदोस्तानी एकेडेमी से परख पर ५००) का पुरस्कार मिला था । हम (शुकदेवविहारी मिश्र) भी उसके परीक्षकों में थे। नाम--(४३६७) देवत्रत शास्त्री, गौरे, दामोदरपुर (चंपारन)। जन्स-काल-सं० १९५६ । विवरण- श्राप जाति के क्षत्रिय, अपने पिता श्रीयुत महावीरसिंह के द्वितीय पुत्र हैं। अापने सं० १९७६ में बिहार-विद्यापीठ से एस-परीक्षा में उत्तीर्ण होकर काशी-विद्यापीठ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के हेतु प्रवेश किया । इस विद्यापीठ से आप शास्त्री परीक्षा में यशस्वी हुए। यह अपने अध्ययन-काल से ही विविध विषयों में लेख लिखते रहे हैं। श्राप समालोचक भी हैं। अपने प्राम के किसानों तथा मजदूरों को शिक्षित बनाने में आप बड़े प्रयत- शील रहे हैं, और इसी के हेतु श्रापने अपने ग्राम में 'नवजीवन' नाम का पुस्तकालय स्थापित किया है। इस समय यह महाशय प्रताप' के सहकारी संपादक के रूप में सफलता पूर्वक कार्य कर रहे हैं । आप समाज तया देश-सुधार के प्रवर्तक और सुकवि हैं।